बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

Aurat- हर गलती की ज़िम्मेदार सिर्फ औरत है क्यों?

Aurat- कुछ लोगो से ये जरूर सुना होगा कि कोरे कागज़ पर दिल का हाल लिख दो, तो दिल बहुत अच्छा महसूस करता है। सोचा क्यों न आज लिख के दिल-ओ-दिमाग़ को थोड़ी राहत दे दी जाये। 

जब से होश संभाला दिल मे  एक सवाल मेरे दिमाग में घर किये बैठा है। जिसकी वजह से मुझे औरतों ( माँ बहन) से शदीद मोहब्बत है, जब किसी भी औरत पे ज़ुल्म होता देखता हूँ तो मेरा दिल रो पड़ता है। इसलिए नहीं कि मै दिल से कमज़ोर हूँ ,बल्कि इसलिए के मैं उनके लिए कुछ नहीं कर सकता। 

कभी कभी मेरा दिल इस क़दर भारी हो जाता है कि औरतो की तसल्ली के लिए दो अल्फ़ाज़ भी मेरी ज़ुबान से नहीं निकल पाते। खुदा गवाह है, मुझे मेरी तकलीफों से नहीं बल्कि उन माँ बहनो की तकलीफों से घुटन महसूस करता हूँ। एक औरत पर कितनी बंदिशें होती है ये सिर्फ एक औरत ही समझ सकती है। 

कभी कभी इस मतलबी दुनिया से नफरत सी होती है, दिल होता है कही दूर चला जाऊँ। जहां कोई न हो सिर्फ तन्हाई हो और मेरे अल्लाह का ज़िक्र मेरी ज़ुबान पर हो । सुकून का सिर्फ एक ज़रिया ज़िक्र-ए-इलाही हो। जब कुछ न हो सके तब सिर्फ दुआ ही साथ देती है। इसलिए दोस्तो नमाज़ का दामन कभी मत छोड़ना। 

खैर, इन बातों का यहाँ कोई मतलब नहीं है, न तन्हाई मिलेगी, न ज़िन्दगी के ग़म जायेंगे। आखिर मेरे रब की आज़माइशें ही तो हैं जो दिल को रब्बुल-आलमीन से जोड़ती है। 

चलो फिर आते है अब असल मुद्दे पर, हमारा समाज हर गलती के लिए सिर्फ औरत (Aurat/Women) को ज़िम्मेदार क्यों ठहरता है? क्यों हर गलती औरत के उपर डाल दी जाती है?

Kya Har Galti Ki Zimmedar Sirf Aurat Hai ?

चलो फिर मैं आज तुमको कुछ सचाई की खास खास बातें बताता हूँ। आर्टिकल पुरा पढ़े। बहुत बहुत मेहरबानी होगी। और आप सभी से गुजारिश हो। Comment box मे अपने दो शब्द जरूर लिखे। 

  1. औरत अपनी पसंद का इज़हार करे तो क्या वो गलत है। 
  2. औरत खुद के लिए कुछ करना चाहे तो क्या इसका हक़ उसको नहीं है इस समाज में। 
  3. औरत खुद के लिए दो बातें भी बोल दे तो उसको दुनिया गलत बताती है। 
  4. अगर हमारे घर का माहौल ख़राब हो तो इसके लिए भी औरत को ही ज़िम्मेदार बताते है। 

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  1.  अगर शौहर(husband) किसी और में दिलचस्पी ले तो इसमे भी औरत की ही गलती बता देते है। 
  2. अगर एक औरत कभी माँ न बन सके तो भी उसकी ही गलती। 
  3. बेटी पैदा हो तो यहाँ भी औरत की ही गलत। जबकि फरमान ए मुस्तूफ़ा है, बेटी अल्लाह की रहमत है। 
  4. अगर बच्चे बिगड़ जाये तो उसकी गैरज़िम्मेदारी बताकर औरत को ही मारा जाता है। 
  5. अगर सास-ससुर की खिदमत न कर पाए तो लड़की के माँ बाप को गालियां। 
  6. घर ननदें तंज करें तो ख़ामोशी से क्यों नहीं सुनती ये उसकी गलती। 
  7. अगर रिश्तें मे दरार आये, या लड़का बदसलूकी करता हो,जिसकी वजह से तलाक़ की नौबत आ जाए  तो उसके लिए भी औरत की ही गलती। 

अफ़सोस दर अफ़सोस होता है ये सारे के सारे इल्ज़ाम उस औरत के उपर डाल देते हैं। जबकि अधिकतर उल्टा सीधा कहने वाली भी  खुद एक औरत (Aurat/Women) है। सच ही कहा है किसी ने की औरत ही औरत की सबसे बड़ी दुश्मन है। और कुछ नहु बहुत जगह मर्द भी हैं जो किसी औरत (Aurat/Women) से कम नहीं हैं, जो किसी औरत के जज़्बात, या उसकी मजबूरी या उसके दुःख दर्द से कोई मतलब नहीं रखते। अगर एक लफ्ज़ में कहूँ तो आजकल के मर्द की नज़र में औरत की हैसियत सिर्फ बस सिर्फ एक खिलौने सी है।    

हां मुझे पता है और आप सभी लोग भी जानते है, हमारे मुल्क में एक औरत (Aurat/Women) की ज़िम्मेदारियाँ कितनी बड़ी हैं, उसे हर रिश्ते को बा खूबी निभाना होता है। बिल्कुल ख़ामोशी के साथ सबको सुन्ना होता है। घर में दस फरद(लोग) हैं तो सिर्फ उसकी ही ज़िम्मेदारी है कि वो सबको खुश रखे। 

अपने बच्चो की परवरिश में एक आला दर्जे की माँ का रोल निभाए। शौहर की ऐसी खिदमत करे के शौहर किसी गैर मेहरम का ख़्याल भी दिल में न लाये, देखना तो दूर की बात है। निकाह से पहले एक अच्छी बेटी बन के वालिदैन की खिदम करे, उनका मान रखे और बाद में एक अच्छी बहू बन के सास-ससुर की खिदमत करे। नन्द, देवर, भाभी और जेठ के साथ अच्छा सुलूक का मुज़ाहिरा दे। अगर उस पर ज़ुल्म किया जाये तो शौहर की जानिब से या ससुराली रिश्तों की तरफ से तो वो खामोश रहे, सब्र करे बर्दास्त की हद पार करते हुए भी बर्दास्त करे। उसकी ज़िन्दगी बस घर वालों की खिदमत करते करते ख़तम हो जाये। ऐसी ही बीवी( wife) और बहू सबको चाहिए न पर कभी सोचा है औरत के भी क्या क्या ख्वाब होते हैं?

जैसे आज के समाज मे मर्दों को एक बहुत ही नेक बीवी और सास को एक गाय जैसी सीधी बहू की तलाश होती है, असल में मैं अपने लाफ़ज़ी तरह से कहु तो सभी को नेक बीवी या बहू नहीं एक फ्री की नौकरानी चाहिय, उसी तरह एक औरत (Aurat/Women) को एक नेक शौहर और अच्छे परिवार की ख्वाहिश होती है जिससे वो ज़्यादा कुछ नहीं बस इज़्ज़त और अच्छे अख़लाक़ की चाहत रखती  है। 

एक मर्द की कितनी उम्मीदें होती हैं उसकी बीवी से ,पर अफ़सोस औरत की इन दो ख्वाहिशों (इज्जत और अच्छा अख़लाक़) को पूरा करना उस मर्द को नागवार गुज़रता है। 

अगर इस समाज मे आपके नज़दीक औरत सिर्फ एक सामान की तरह है तो बताये, क्या इस्लाम ने औरत को गुलाम का दर्जा दिया है?

नहीं, मैंने तो ऐसा कही भी नहीं पढ़ा बल्कि औरत को जो इज़्ज़त इस्लाम में मिली वो किसी दूसरे मज़हब (धर्म) में न थी, न है और न कभी मिल सकती है। क्यो की क़ुरान ए पाक हक़ था, हक़ है और हक़ ही रहेगा। 

जिस औरत (Aurat/Women) को मर्द पैरों की जूती समझते है ना वही (Aurat/Women)औरत इस्लाम के झंडे बुलंद कर आई है। 

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  1. इस दुनिया को नस्ल-दर-नस्ल बढाने वाली एक औरत थी। (माँ हव्वा)
  2. अल्लाह ने जिस औरत के ज़रिया अरब मुल्क के वीरन शहर को बसाया वो भी एक औरत ही थी। (हज़रात हाजरा عَلَيْهِ ٱلسَّلَامُ)
  3. सबसे पहले ईमान लाने वाली और इस्लाम की अज़मत और झंडा बुलंद करने के लिए माल खर्च करने वाली एक औरत थी। (हज़रात ख़दीजा رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهَا)
  4. सबसे पहली शहीद एक औरत ही थी। (हज़रत सुमय्या رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهَا)
  5. जिस मिम्बर शरीफ़  पर आज मर्द हज़रात खड़े होते है वो भी सबसे पहले एक औरत ने बनवाया था। (अंसारी सहाबिया) 
  6. सबसे पहली अज़ान जो हुई इस्लाम में , वो एक औरत के घर की छत्त ही थी। (अंसारी सहाबिया)

जितने भी अज़मत के काम थे अल्लाह ने मर्दों के बजाये औरतों (Aurat/Women) से ही कराये। हमें तो अल्लाह का खूब खूब शुक्रगुज़ार होना चाहिए उसने हमें इन मरतबों से नवाज़ा। तो ज़रा गौर करें!

आपकी खुद की बेटी के लिए इस समाज मे आप एक नेक शौहर की उम्मीद रखते है पर क्या आप खुद वैसे शौहर हैं?

जाते जाते बस एक इल्तिजा करना चाहता हूँ, औरत (Aurat/Women)एक माँ होती है, और माँ के पैरो मे अल्लाह ने जन्नत बताई है। इसलिए उसकी इज्जत करे, उसे पैरो की धूल न समझे। 

यहाँ मैं सभी मर्द, या औरत (Aurat/Women) की बात नही कर रहा हूँ। अल्लाह के करम से कुछ मर्द और औरत बहुत ही परहेजगार होते है। अल्लाह हम सबको हिदायत दे। और माँ बहनो (Aurat/Women) की इज्जत करने वाला बना। 

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